17 जुलाई 2011

रोज का अपना रिचार्ज.




कभी कुछ पल अपने लिए निकालो...अपने आप को रिचार्ज करो.  कुछ इस तरह 


(इसे अच्छी तरह लगभग दो बार पढ़े और फिर इसे प्रारंभ करे ताकि ये समझ में आने के बाद 

शब्द अधिक प्रभावी हो सके. ) प्रतिदिन लगभग एक बार से दो बार करे 


यह सब आराम के साथ करे........जीवन की सभी मुश्किलें हलकी होती नजर आएगी......

...................................

"अपने आप को शांत होने का आदेश दो..खाली हो जाओ.अपने आप को ढीला छोड़ दो.


कोई आग्रह नहीं. कोई शिकायत नहीं, कोई जिम्मेदारी नहीं. कोई कमी नहीं. किसी


तरफ झुकाव नहीं. किसी की गरज नहीं. कोई बंधन नहीं. अपने आपको सभी चिंताओं


से मुक्त होने दो..खाली हो जाओ.. मस्त हो जाओ.......


सच में तुम्हे कुछ नहीं चाहिए. क्योकि तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है, 


जब तुम अपने आप को समझ लेते हो तो तुम मुक्त होते हो...


.अपने आप को सभी बंधनों से मुक्त करदो. तुम्हे बाँधने वाला इस धरती पर कोई 


नहीं. ब्रह्माण्ड में भी नहीं. तुम ही सर्वत्र और स्वतंत्र हो. 


..................अगर कुछ चल रहा है, तो वे 


तुम्हारे विचार. और याद रखो ये तुम्हारी उत्पति है, तुम नहीं..इन्हें भी तटस्थ भाव से


देखते जाओ.किसी भी विचार को बल मत दो. बस देखते रहो...ये भी अपने 


आप शांत होते नजर आयेंगे......"






शांत हो जाओ. शांत हो जाओ. शांत हो जाओ.......हाँ ! बस इसी प्रकार. 


शांत! पूरा शांत.....चारों तरफ शांति.....सब जगह 


शांति........सम्पूर्ण.चेतना शांत है....चारो तरफ पूरा शांति का समंदर 


है.....आहा. मैं पुरे रूप में मस्त हो रहा हूँ.....मस्त हो रहा हूँ....अपने 


आप से वो घोषणा करो जो चाहते हो. "मैं मस्त हूँ , मैं प्रसन्न हूँ. मैं 


आनंद में हूँ, मैं शांत हूँ, मैं मजेदार हूँ. मैं हमेशा खुश और निश्चिंत हूँ.मेरी समझ बहुत


ही गहरी है. सब मुझे प्यार करते है. सब मेरा दिल से आदर करते है...मेरी 


बुद्धि परिपक्व है..... मैं समृद्ध हूँ , मैं उदार हूँ , में सबका ध्यान रखता 


हूँ,     मैं संपन्न हूँ, दौलत मेरी तरफ मुक्त होकर पुरे रूप में बढ़ रही 


है...मुझे कोई कमी नहीं है, कमी होगी भी नहीं,क्यों कि मैं पूर्ण हूँ, मुझे 


अपने आप से कोई शिकायत नहीं है." ...................धीरे धीरे प्रकृति 


आप के अनुकूल होती नजर आएगी और आपके साथ वही होगा जैसा आप चाहते 


हो."............
.....
......
......
......

....
यह अभ्यास प्रतिदिन करने से हमारे मस्तिष्क कि सक्रीय कोशिकाओं का आराम


महसूस होता है. और नविन कोशिकाओं का निर्माण स्वतः शुरू हो जाता है. चाहे आप


कि कोई भी उम्र हो, इससे कोई फर्क नहीं होता....यह अपने आप को शारीरिक और


आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होने का तरिका है.....


यदि किसी को कोई भी प्रकार की बिमारी है और वह मेरी बात से सहमत है कि


"समर्पण प्रक्रिया "से स्वस्थ हुआ जा सकता है तो आप मुझे लिख सकते है...


में आपके लिए व्यवस्थित प्रार्थना प्रक्रिया/सुझाव प्रक्रिया/आदेश प्रक्रिया बना कर भेजूंगा...मेरा 


मानना है कि हम इन प्रक्रियाओं द्वारा असाध्य बीमारियों से मुक्त हो सकते है..........
मेने इसे करके देखा है.......


मस्त रहो - स्वस्थ रहो.......

12 जुलाई 2011

इन्हें भी देखे. शायद कुछ काम का निकल आये.

यदि आपको खुश रहने की आदत है, तो दुनिया आपके पीछे है और आपको देखती है..........
यदि आप उदास या दुखी रहते है तो आप दुनिया के पीछे है और आप दुनिया को देखते है........
याद रखे खुश रहना भी एक आदत है. तो खुश रहना सीखे.... क्योकि साजो सामान तो बहुतों के पास है, औलाद भी बहुतों के पास, और रुपया पैसा भी, फिर भी खुशियाँ कोसो दूर...............खुश रहिये आपकी खुशी ही आपकी बेशकीमती दौलत बन जायेगी और लोग आपको पूछेंगे कि..."आखीर आप इतने खुश कैसे है,"




दूसरों को वह दो. जो तुम उनसे चाहते हो..प्रेम, प्रोत्साहन, सहानुभूति,अपनत्व, मीठी बोली, समानता का भाव...क्या ये सब देने के लिए कम है.......ये लौटकर तुम्हारे पास आयेंगे...


क्या आप जानते है. हम आज तक क्या ढूंढते आ रहे है.....आनंद सिर्फ आनंद ...खाने से आनंद, पिने से आनंद, पहनने से आनंद, सोने से आनंद, पाने से आनंद, छोड़ने से आनंद, गाकर आनंद, सुनकर आनंद, देकर आनंद, लेकर आनंद, कल्पना भी वही करते है, जिससे आनंद मिलता हो,जिसे सोच कर मजा मिले..... हर वस्तु में हम आनंद की खोज करते है. हमें चाहिये आनंद. चिर आनंद, पूरा आनंद, जो खतम ना हो. यह आनंद ही हमें पूर्णता दे सकता है, यह ही हमारी खोज को खतम कर सकता है....इंसान ने आजतक जो कुछ खोजा है, जिसका अविष्कार किया है, वह सब इसी आनद की खोज में......इसके नाम अलग अलग है... संतुष्टी, शांति, अमरता, पूर्णता, मोक्ष.......




धन किसी को गिराता या उठाता नहीं है. हमारी सोच ही हमें गिरती या उठाती है.हमारी व्यापकता, उदारता,हमारा सार्वभौम प्रेम हमें महान बना देता है...




दूसरों को बदलने से कही गुना ज्यादा अच्छा है. स्वयं का सुधार.... दुनिया तो आपको देखकर ही सुधर जायेगी . क्योकि कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता.......




दुनिया का सबसे बड़ा वशीकरण है..मीठा बोलना. जबान में लोच, बोली में प्यार, वचन में सादगी...क्योकि इससे तो वे भी वश में हो जाते है, जो हमसे पहली बार मिलते है...




बुद्ध ने कहा हैः मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बँध मत जाना। तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ, तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो, इसकी सूचना हूँ। तुम मुझे सम्मान दो, तो यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है, लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना। क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले तो बुद्ध कैसे हो पाओगे? बुद्धत्व तो खुली आँखों से उपलब्ध होता है, बंद आँखों से नहीं। और बुद्धत्व तो तभी उपलब्ध होता है, जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो।




क्या तुम अपने आप से प्रेम करते हो. क्या तुम अपने आप का आदर करते हो...... यदि नहीं तो तुम दूसरों से इसकी आशा कैसे कर सकते हो.... कि वे तुम्हे चाहे...... अपने आप को प्रेम करों (याद रहे कि प्रेम का अर्थ प्रेम होता है, गर्व या धमंद नहीं. ). .....तटस्थ हो कर, इमानदारी से, अपनी बातों का आदर करों...जैसे तुम कियो को सहजता से प्रेम करते हो, आदर करते हो,...अपने साथ भी करो....
..... देखते ही देखते तुम्हे प्रेम करने वालो कि संख्या में गजब का ईजाफा हो जाएगा...




अपने विचारो को बदले, आपकी तकदीर खुद ब खुद बदल जाएगी.




यदि आप प्यार किये बिना नहीं रह पाते है, यदि आपने ज्यादा धोखे खाए है, यदि आप को ज्यादा इकट्टा करने में रास नहीं है, यदि आप थोड़े से सुख से सुखी नहीं है, यदि आपको लुटाने में मजा आता है, यदि आप किसी का दुःख नहीं देख सकते............ तो समझो की आपने ध्यान का आधा रास्ता पार कर लिया. भले ही आपने जिंदगी में कभी ध्यान किया ही नहीं हो...
अशोक सोनाना.




दुनिया का नियम है. उगते सूरज को सभी प्रणाम (सूर्य नमस्कार ) करते है. ना कि डूबते को. उसी प्रकार लोग जीवन में खुश लोगो के साथ वक्त बिताना पसंद करते है. ना कि उदास और दुःखी के साथ. जीवन का चुनाव आपके पास है. खुशिया चुने या उदासी.




अरे एक मिनट! रुकिए! ज़रा सोचिये! और ईमानदारी से अपने आपको जवाब दीजिए. क्या आपकी सफलता के बारे में आपको लगता है. कि आप सफल हो जायेंगे. हाँ या ना............... आराम से और इमानदारी से जवाब दीजिए.जल्दबाजी न करे. अपने दिल से इमानदारी से पूछे. यदि आपको लगता है हाँ, तो आपको कोई सफल होने से नहीं रोक सकता. कोई भी नहीं......






सत्य की खोज या ईश्वर की प्राप्ति का सबसे सुन्दर माद्यम गृहस्थ रहकर खोज में लगे रहना हो सकता है.. क्योकि गृहस्थ हमारे द्वारा की गई साधना को परखने में मदद करता है.हर पल ऐसी परिस्थितिया पैदा होती है, जिससे हमारी साधना की परीक्षा होती है. .गृहस्थ जग की निरर्थकता को स्पष्टता से प्रकट करता है..यहाँ आप हर चीज को चख कर, परख कर देख सकते है, समझ कर छोड सकते है. यहाँ प्रतिबन्ध नहीं है. स्वतंत्रता है.. आपके पास विकल्प है. चाहे तो छोडे चाहे ना छोड़े..चार दिन बाद छोड़े...समझ कर विवेक पैदा होने की सम्भावना सिर्फ यही उपलब्ध है..... गृहस्थ साधना को तपाता है... इसका एक उत्कृष्ट प्रमाण यह है कि कबीर, रैदास, संत एकनाथ, संत तुकाराम,नरसिह मेहता, रामकृष्ण परमहंस,...... आदि गृहस्थ थे...और ... शुकदेव जैसे महान तपस्वी को भी गृहस्थ जनक को गुरु बनाना पड़ा...... में यह नहीं कहता कि गृहस्थ ही माध्यम है....लेकिन में यह कहता हू कि यह अपने आप में व्यवस्थित है जहां यदि आपको तड़प है तो मंजिल पाने के अवसर यहाँ ज्यादा है...................




गडबड जहाँ से होती है, सुधार भी वही से करना होता है. दुनिया में जितनी भी मुसीबतें - समस्याए है. उसकी मूल वजह उत्पति के सिद्धांत को नहीं समझ पाना है...... सृष्टि की संचालन प्रक्रिया समझ ले तो अपने कष्ट काफी कुछ कम हो सकते है. और सम्पूर्ण निवारण भी किया जा सकता है.... उतपति का सिद्धांत कोई जटिल नहीं है... नहीं सिर्फ आध्यात्मिक लोगो के लिए..... यह हम सबके लिए है... और वास्तव में बहुत ही सरल और सहज है.....इस पर जल्द ही लेख लिख रहा हू...






इस दुनिया में हो रही हर घटना,रहस्य,उलझन, विचार या चमत्कार को समझा या समझाया जा सकता है.. कुछ भी लंबे समय तक रहस्यमयी नहीं हो सकता... इसीलिए आप (इंसान) सबसे ज्यादा शक्तिवान है.. क्योकि आपका का कोई विकल्प नहीं है...
मेरी नजर में "अपने आप को कमजोर समझना ही दुनिया में सबसे बड़ा पाप है."






बच्चा जब चोकलेट के लिए हठ करता है, तो पिताजी उसे समझाने की पूरी कोशीश करते है. फिर न मानता देख दो चार चपत भी लगा देते है..... तो क्या हम मान लेते है कि उस बालक के पिता बालक से प्रेम नहीं करते... हमारे जीवन के कष्ट भी परम पिता द्वारा लगाईं गयी चपत है... संघर्ष से उदास न हो... उसे समझे और भविष्य के लिए उससे सीख ले.......


दुनिया का नियम है. उगते सूरज को सभी प्रणाम करते है. ना कि डूबते को.
लोग जीवन में खुश लोगो के साथ वक्त बिताना पसंद करते है. ना कि उदास और दुःखी के साथ.
जीवन का चुनाव आपके पास है. खुशिया चुने या उदासी.




कभी उस गरीब भिखारी की आँखों को देखो जो एक रोटी के लिए तरस रहा है... अब ज़रा उस बनिए (व्यापारी) को जो लालच से भरा हुआ है...... दोनों की सोच अलग है. लेकिन दोनों असंतुष्ट है.... भिखारी को तो शायद भूख मिटानी है. लेकिन बनिया तो लोभ में वह जोड़ने में लगा है. जिसकी उसे जरुरत ही नहीं है... जो उसका नहीं रहेगा.......... यानी. यह भिखारी से भी बड़ा भिखारी है... फिर उस भिखारी का अनादर क्यों, जो सिर्फ पेट के लिए भिखारी है.?




जिसे पाना चाहते हो उसकी कल्पना में जियो. खुश रहो. विशवास करो कि तुम उसे पा ही लोगे क्योकि तुम उसके हक़दार हो... बस! यदि यह कर सकते हो तो वह तुमसे दूर रह ही नहीं पायेगा... वास्तव में आप जिसे ढूंढ रहे हो, वह भी आपको ही ढूंढ रहा है.....

24 जून 2011

जागरण

अपने आप में विश्वाश करो. अपने आप को पहचानो. तुम्हारे अन्दर वो ताकत है की तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम वह आग का गोला हो, जिससे यह दुनिया जगमगाती है. दूर दूर तक फैला यह समंदर बारिश के रूप में सिर्फ तुम्हारी ताकत से दुनिया की प्यास बुझाता है.
गांधी, राम, बुद्ध, महावीर, नानक, कृष्ण, अब्राहम लिंकन, सेक्सपियर, ग्राहम बेल, कोलंबस, ये लोग ऊपर(आकाश) से नहीं गिरे थे. वे भी अपनी तरह जन्मे थे.उनकी पुस्तके उठाकर पढो. हमसे कही ज्यादा संघर्ष उन्होंने किया था. उन्होंने जंगल में रास्ते बनाये. रास्ता निकलने का इंतज़ार नहीं किया. एक बात हमेशा याद रखो.
"हम तब तक कमजोर है. जब तक हम ऐसा मानते है."

...
एक बार, सिर्फ एक बार, दिल से, बिना किसी की सुने आवाज सुने, एलान करो कि तुम महान हो. तुम उदार हो, तुम्हारी आज्ञा मानने को प्रकृति हाजिर खड़ी है. तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है. हर कमी को पूरा करने की ताकत तुम्हारे पास पुरे रूप में है.. ....
अपनी ख़ुशी को फूटने दो. मन को फैलने दो. अपने विचारो से उसे रोको मत. उसे अपने वास्तविक रूप में जाने दो. खुश रहो. क्योकि प्रकृति का हर हिस्सा तुम्हे खुश देखना चाहता है.
जरा सोचो, इंसान इस धरती पर सर्व श्रेष्ठ प्राणी है. तुम इंसान हो. प्रकृति ने तुम्हे खुश देखने के लिए कितनी तैयारी की है. हजारो तरह के फूल तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही तो खिलते है. कल कल करती नदियों की सुन्दरता तुम्हारे लिए ही तो है. ......चिड़ियों का चहकना...कोयल की कुक......गाँवों की छटाएं.... झर झर करते झरने.
.............. ..... मालूम नहीं और क्या क्या............. सिर्फ सर्व श्रेष्ट प्राणी के लिए..........सिर्फ तुम्हारे लिए ............जरा अब देखो .....तुम्हारा मन इसे मानने को तुरन्त तैयार हो रहा है.....
इसे समझो ..आराम से समझो .....मेरे कहने पर मत जाओ.....तुम सोचों कि तुम्हारे(इंसान ) बिना इन सबका क्या काम......ये सब तुमहारे लिये ..फिर देखो...........
और तुम्हारे आस पास का वातावरण तुम्हारे अनुकूल होना शुरू हो जाएगा.
तुम्हारे दोस्त तुम्हे समझेंगे. तुम्हारे माता पिता तुम्हारी सुनेंगे. तुम्हारा व्यापार सही चलना शुरू हो जाएगा. लोग तुम्हारे पास वक्त बिताने में ख़ुशी महसूस करेंगे. .......................तुम्हारे साथ वही होगा. जिससे तुम्हे ख़ुशी हो ................ जय हो बस तुमहे तो एक काम हि करना है और वह है "अपने आप मे विशवास करो"
......
.जो चाहिए और जिसे पाना चाहते हो, उसके बारे में सोचो, उसकी सफलता कि कल्पना में जियों...
जो नहीं चाहिए उसके बारे में मत सोचों, उसकी चिंता भी मत करों, क्योकि तुम जिसके बारे में सोचते हो. वह हो कर ही रहेगा. तुम अपनी असफलता की चिंता कर उसे आमंत्रित करते हो. उसे बल देते हो.....
याद रखो ये बोल "इंसान वही बनता है जिसके बारे में वह दिनभर सोचता रहता है."
क्या तुम चाहते हो कि तुम असफल हो जाओ ........ नहीं न .........तो फिर सफलता के बारे में सोचो......... खुश रहों ............तुम्हे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता....तुम लाजवाब हो. एक तुम ही तो हो जिसका कोई विकल्प नहीं है.बाकी सबके विकल्प है... तुम्हारी ... सोच में जादू है... आज नहीं तो कल तुम्हे ये सत्य समझना ही होगा...कि..............
तुम ही
........
दुनिया............
के ..
.................
...... सबसे .
.............
.बड़े.............
..............
.. जादूगर हो..........


याद रखों कि प्रकृति कि कोई भी घटना को घटने के लिए कोई परिश्रम की जरुरत नहीं........
क्या नदी को अपना रास्ता बनाने में जोर लगता है.?
क्या फूलों को खिलने में मेहनत करनी पड़ती है.?
क्या घास को उगने में कोई कठिनाई होती है.
क्या बादलों को अपने अंदर लाखो टन पानी रखने में कोई कष्ट होता है.
अपने आप को सहजता में छोड दो.
सबका भला चाहो................अपनी सफलता के प्रति निश्चिन्त रहो.............पूरा प्रयास करो. पूरी मेहनत करों लेकिन , तनिक भी फ़िक्र नहीं............... सावधानी रखो लेकिन उसकी आड में तनाव पैदा मत रो..............................................अपने आप को मुक्त कर दो.अपने आप को खोल दो.. चिंताए गई, तनाव दूर दूर नहीं है.. तुम अब पहली बार एकदम हलके हो रहे हो.आज तुम अपने आप में हो.. तुम अनोखे और प्रेम करने लायक हो.. एलान करो कि तुम अब खड़े हो रहे हो... अब तुम्हारी आँखे होंसले से चमक रही है...अब तुम मंजील की तरफ कदम बढ़ा रहे हो.. और अब तुम अपनी मंजील पाकर ही रुकोगे.... पाकर ही रुकोगे... हाँ हाँ पाकर ही रुकोगे.... और फिर तुम्हारा कोई शानी भी तो नहीं है... क्या तुमने देखा है कोई इंसान से ज्यादा समझदार प्राणी......
देखते ही देखते खुशिया तुम्हारे चारो तरफ होगी...........................जय हो.

14 जून 2011

सम्पूर्ण जीवन की ओर (पार्ट १)



 कई लोग ध्यान, योग. भक्ति, शांति जैसे शब्दों को सुनकर घबरा जाते है. क्योकि उन्हें लगता है, कि ये शब्द  उनसे उनकी मौज छीन लेंगे, उनसे उनकी जवानी छीन लेंगे, इन शब्दों के सही अर्थों की जिनको सबसे ज्यादा जरुरत है, वे ही नाम सुनकर भाग जाते है. इसीलिए मैं जानकारी के लिए बता दू कि मेरे  ये लेख आपको यह बताएँगे कि आप जितने सुखी है उससे कई गुना सुखी कैसे हो सकते है, उसी जगह पर रहते हुए, बिना कुछ अलग किये, ठाट से दुनिया में जीते हुए सबसे ज्यादा सुखी कैसे हो सकते है, पूरी स्वतंत्रता कैसे पा सकते है.आप पूरा आनंद कैसे ले सकते है.
यहाँ हम बाहरी सुखो की अल्पता को समझते है.


जिंदगी में जीते हुए हमें कई कारणों से कई बार जीवन की अल्पता दिखाई देती है., जिंदगी का अधूरा सुख दिकाई देने लगता है. जैसे---

 "हमारा नाम सुलतान सिंह है. जब कोई पीछे से सुल्तान सिंह कहकर पुकारता है. तो तुरंत पीछे मुडकर देखते है."
आपसे कोई पूछे आप कौन है. तो आप बड़े ठाट से कहते है. - सुल्तान सिंह.
अब ज़रा सोचे कि हमारे माता पिता ने हमारा नाम लल्लू मिया रख लिया होता तो .......
तो भाई! आज हम लल्लू मिया होते. कोई और नाम होता तो कोई और होते. तो फिर आखिर हम है कौन?....
 अब बात तो पक्की है कि हम सुलतान सिंह नहीं है, क्योकि ये तो रखा हुआ नाम है. तो फिर हमारा परिचय क्या है.......
जब इस प्रकार के प्रश्न हमें किसी कारनवश झकजोरते है तो हम अंदर (विवेक) की ओर अग्रसर होते है, सोचने पर मजबूर होते है, मन कि गहराइयों कि ओर बढते है......... हम खोज कि ओर बढते है, पहली बार हम समझने कि कोशिश करते है, क्योकि आज तक हम किसी दूसरे कि सोच पर निर्भर थे... पहली बार स्वयं सोचते है. अपने लिए, बिना किसी सहारे के.....

हम रोज खाते है, पूरी जिंदगी खाते ही रहते है, पेट भरता ही नहीं.
रोज नहाते है. मल मल के नहाते है. मेल जाता ही नहीं.
हमने मालुम नहीं खुशी पाने के लिए, सुख पाने के लिए, मजे के लिए कितने ही तरीके ईजाद किये, लेकिन सुख तो मिलता ही नहीं..... अरे क्षमा करे... मिलता


तो है लेकिन क्षणिक....... लगता है कि ये मिला - ये मिला और पूरा हो जाता है...फिर सुख कि तलाश.... फिर ये मिला ये मिला... और फिर खत्म हो जाता है......... यह बाहरी सुख एक थियेटर कि फिल्म के मजे से ज्यादा मुझे भान नहीं होता... आपकी बात आप जाने....
ज़रा गौर करना है.... (मैं आपको पहले याद दिला दू कि जानना है, सिर्फ मानना नहीं है.) ...... एक व्यक्ति..... सिर्फ एक व्यक्ति... जिसे आप जानते हो, और वह सुखी हो....सोचिये... दिमाग..पर जोर डालिए..................... परिणाम शायद नहीं ही होगा. हाँ ऐसा लग सकता है, कि वह सुखी है, लेकिन जिसके बारें में ऐसा लगे उसे नजदीक से देखना, अंदर से देखना, अपना बनाकर पूछना, .....दुःख ही दिखाई देगा.
......... बस यही रामलीला चलती है. हर बार सुख के मामले में निराशा ही हाथ लगाती है.... मैं यह नहीं कहता कि लोग सुखी नहीं है. कुछ मिलते भी है, जिन्हें यह समझ में आ गया है कि "सुखी कैसे रह सकते है." इसीलिए वे सुखी है, क्योकि उन्हें समझ में आ गया है. कि सुखी होने के लिए बाहर नहीं अंदर झांकना होगा. "ध्यान" भी सुखी होने के तरीको में से एक तरिका है.

संसार में सुख हमेशा ही मिलते हुए दिखाई देते है. लेकिन कभी मिलते ही नहीं. प्यार किया तो लडकी ने धोखा दे दिया. उसने नहीं भी दिया तो अपना मन उस्ससे ऊब गया. या उसका मिजाज सही नहीं है. दूसरी मिली तो उसमे कुछ और सही नहीं है. पांच साल से बिजनेस कर रहे है. उतनी प्रोग्रेस नही हुई, जितनी होनी चाहिए. प्रोग्रेस हुई, पगार बढ़ी तो महंगाई भी बढ़ गयी. आप ज्यादातर लोगो के बारे में जानते होंगे जो पूरी जिंदगी की कमाई से पचास साठ की उम्र तक अपना घर खडा करते है. और अंत में रहने की बारी आई तो खुद चल दिए खुदा के घर. या बेटो ने अपने घर से निकाल बाहर किया.  हर मामले में हाल ऐसा ही है.
भाई! ज्यादातर लोगो कि बुद्धि औसत होती है. फिर क्या कोई ऐसा तरिका भी है. की आदमी दुनिया के हर शौक का आनंद लेता हुआ. बिना किसी का दिल दुखाये, बिना गलत कमाई के, अच्छी दौलत कमा सके, रिश्तों को शानदार मेनेज कर सके सब उससे खुश रहे. उसे सब सुख मिले, वह अपना यह लोक और परलोक दोनों सुधार सके., ................
हाँ है............. दुनिया बनाने वाला अपने बच्चों को दुखी कैसे कर सकता है. ..............एक तरीका है. जो वैज्ञानिक है. जो आधार युक्त है. जो सरल अहि. जो मजेदार है. जो आपकी वर्तमान दुनिया को बदल देगा, चाहे आप किसी भी स्थति में हो.. वही से आपके सभी सुखों का मार्ग प्रसस्त होगा..


मैं हवा में बातें नहीं करता ..................... अगले लेख में मैं आपको इन सबके लिए एक सिंपल तरीका बताने वाला हू. जो आपकी जिंदगी बदल देगा...... मेरे 


पर अहसान करियेगा और अगला लेख जरुर पढ़ियेगा. आपके लिए परम उपयोगी इस अगले लेख का नाम होगा.- सम्पूर्ण जीवन की ओर  (पार्ट २ ) "एक जादू जो आपकी जिंदगी बदल देगा."


 रचना एवं प्रस्तुति. अशोक सोनाणा

















13 जून 2011

खुशियाँ हमारे पीछे भागेगी.



कभी दुनिया कि सुन्दर सृष्टि को शांति से बैठकर देखिये... निहारिए... उसे समझने का शांत प्रयास कीजिये. ...
आपको मालुम होगा कि बनाने वाले ने इसे बड़ी फुर्सत से बनाया है. इतनी सुन्दर दुनिया में उसने सभी सुंदरता भरदी... उसने कंजूसी नहीं की. जिस की ज्यादा जरुरत है उसे ज्यादा भर दिया. भोजन चाहिए मिल जाता है. पानी के बिना नहीं रह सकते उससे ज्यादा आसानी से मिल जाता है. हवा चाहिए, ये तो हर जगह मौजूद है.... इंसान कि बनी हर वस्तु की कोई नेगेटिव प्रभाव है. लेकिन उस दुनिया बनाने वाले के निर्माण का कोई नेगेटिव प्रभाव नहीं.................
.....इतने रंग हमें पक्षियों के परों में दिखाई देते है कि जितने हम आज तक ईजाद ही नहीं कर पाए..... दुनिया उसने इतनी फैलादी कि हम उसे आज तक देख ही नहीं पाए... भले ही हम चाँद पर चले गए...इतने रहस्य भर दिए कि भले ही हमने कुछ सुलजा दिए लेकिन आज भी कई हमारी बुद्धि से ही परे है. 
उस पर कुछ कहना नादानी ही है पर इतना जरुर कहूँगा कि इतना करने के बाद भी उसकी सर्व श्रेष्ठ कृति "इंसान" दुखी है.......वह बिचारा रास्ता भटक गया है. बिचारा इसीलिए कि भटकने के बाद तो भी बिचारा हो ही जाता है.
हम दुखी है.......क्योकि यह "दुःख" हमने बनाया...... मूल स्रोत को भूल कर नए आविष्कार शुरू कर दिए. नए आविष्कार से मेरा मतलब है मूल स्रोत से विपरीत दिशा में कदम...परमात्मा का दिया पेट तो आसानी से भर जाता है. लेकिन हमारा आविष्कृत पेट "लोभ" का पेट कभी भरता है नहीं................आदि आदि.
यहाँ मैं शिकायत नहीं कर रहा . मैं जानता हू कि आप सही कर रहे है.आपको जो चाहिए उसकी (सुख की )तलाश कर रहे है. आपको उसकी प्यास है. मुझे भी है.... लेकिन हमारी दिशा गलत है.....
हजारों हजारों वर्षों से हम बाहर सुख ढूँढ रहे है, मिला ही नहीं.... अब विनती है.(हालाँकि ये विनती ये निवेदन तो कई बार परमात्मा के बन्दों ने हमें किया है.)............ अब प्रार्थना है. कि सिर्फ एक बार दिशा बदल कर देखले तो क्या हर्ज है.......... सिर्फ निवेदन है.... जोर जबरदस्ती तो है नहीं.... मजा नहीं आये तो लौट जाइयेगा अपनी इसी दुनिया में वापस..............
आईये. उस परम सत्ता से बातें करे उसे पूछे अपने दुखो के निवारण के बारे में.....पुरे निवारण के बारे में.....
..................... मैं चाहता हू हम सिर्फ अपने आप को समझने का प्रयास करे. यही रह कर, इसी दुनिया में. कहीं नहीं जाना है. कुछ नया नहीं करना है. संन्यास नहीं लेना है...... क्योकि वहां जाकर भी हम अपना वाला पेट (परमात्मा का दिया नहीं ) भरने के तरीके ईजाद कर ही लेते है. आश्रम. चेले, चपाटे, भक्त, और मालुम नहीं और क्या क्या...... जहा है वही ठीक है. जैसे है. वैसे ही ठीक है.... अपनी खोयी वस्तु (शाश्वत सुख. पूरा सुख, समझोता नहीं.) को ढूंढना है. घर में है ठीक है, नौकरी करते है ठीक है, समय कम मिलता है. ठीक है. कॉलेज में पढते है. ठीक है. बहुत सारी बुराइय है ठीक है. नशा करते है. ठीक है. ..... सब ठीक है. सब घर की बात है. कपड़ो के अंदर बहुत सारे नंगे है..... हम सब जैसे भी है. एक समाज है एक जाती है है. जानते है कौनसी जाती- युगों युगों से सुख कि तलाश करने वाली जाती. इसीलिए हम जाती बंधू है..... आइये हम मिलकर अपनी समस्या का समाधान ढूंढते है..............................
.....
......
थोड़ी देर के लिए शांत हो जाए खाली हो जाये. कोई बोझ नहीं है, कोई जिम्मेदारी नहीं. है मैं शांत हू, शांत हू. एकदम शांत हू. मस्त हू. 
अब इन शब्दों को ध्यान से शांत होकर पढ़े.
"अपने आप में विश्वाश करो. अपने आप को पहचानो. तुम्हारे अन्दर वो ताकत है की तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम वह आग का गोला हो, जिससे यह दुनिया जगमगाती है. दूर दूर तक फैला यह समंदर बारिश के रूप में सिर्फ तुम्हारी ताकत से दुनिया की प्यास बुझाता है.
गांधी, राम, बुद्ध, महावीर, नानक, कृष्ण, अब्राहम लिंकन, सेक्सपियर, ग्राहम बेल, कोलंबस, ये लोग ऊपर(आकाश) से नहीं गिरे थे. वे भी अपनी तरह जन्मे थे. उनकी पुस्तके उठाकर पढो. हमसे कही ज्यादा संघर्ष उन्होंने किया था. उन्होंने जंगल में रास्ते बनाये. रास्ता निकलने का इंतज़ार नहीं किया.
एक बात हमेशा याद रखो.
"हम तब तक कमजोर है. जब तक हम ऐसा मानते है."
...
एक बार, सिर्फ एक बार, दिल से, बिना किसी की सुने आवाज सुने, एलान करो कि तुम महान हो. तुम उदार हो, तुम्हारी आज्ञा मानने को प्रकृति हाजिर खड़ी है. तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है. हर कमी को पूरा करने की ताकत तुम्हारे पास पुरे रूप में है.. ..
...
अपनी ख़ुशी को फूटने दो. मन को फैलने दो. अपने विचारो से उसे रोको मत. उसे अपने वास्तविक रूप में जाने दो. खुश रहो. क्योकि प्रकृति का हर हिस्सा तुम्हे खुश देखना चाहता है.
जरा सोचो, इंसान इस धरती पर सर्व श्रेष्ठ प्राणी है. तुम इंसान हो. प्रकृति ने तुम्हे खुश देखने के लिए कितनी तैयारी की है. हजारो तरह के फूल तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही तो खिलते है. कल कल करती नदियों की सुन्दरता तुम्हारे लिए ही तो है. .................... सोचो ................... मालूम नहीं और क्या क्या............. सिर्फ सर्व श्रेष्ट प्राणी के लिए..........सिर्फ तुम्हारे लिए ............
...
जरा अब देखो .....तुम्हारा मन इसे मानने को तुरन्त तैयार हो रहा है.....
इसे संजो ..........फिर देखो...........
और तुम्हारे आस पास का वातावरण तुम्हारे अनुकूल होना शुरू हो जाएगा.
तुम्हारे दोस्त तुम्हे समझेंगे. तुम्हारे माता पिता तुम्हारी सुनेंगे. तुम्हारा व्यापार सही चलना शुरू हो जाएगा. लोग तुम्हारे पास वक्त बिताने में ख़ुशी महसूस करेंगे. .......................तुम्हारे  साथ वही होगा. जो तुम्हे ख़ुशी दे................ जय हो
अशोक सोनाना..........