13 जून 2011

खुशियाँ हमारे पीछे भागेगी.



कभी दुनिया कि सुन्दर सृष्टि को शांति से बैठकर देखिये... निहारिए... उसे समझने का शांत प्रयास कीजिये. ...
आपको मालुम होगा कि बनाने वाले ने इसे बड़ी फुर्सत से बनाया है. इतनी सुन्दर दुनिया में उसने सभी सुंदरता भरदी... उसने कंजूसी नहीं की. जिस की ज्यादा जरुरत है उसे ज्यादा भर दिया. भोजन चाहिए मिल जाता है. पानी के बिना नहीं रह सकते उससे ज्यादा आसानी से मिल जाता है. हवा चाहिए, ये तो हर जगह मौजूद है.... इंसान कि बनी हर वस्तु की कोई नेगेटिव प्रभाव है. लेकिन उस दुनिया बनाने वाले के निर्माण का कोई नेगेटिव प्रभाव नहीं.................
.....इतने रंग हमें पक्षियों के परों में दिखाई देते है कि जितने हम आज तक ईजाद ही नहीं कर पाए..... दुनिया उसने इतनी फैलादी कि हम उसे आज तक देख ही नहीं पाए... भले ही हम चाँद पर चले गए...इतने रहस्य भर दिए कि भले ही हमने कुछ सुलजा दिए लेकिन आज भी कई हमारी बुद्धि से ही परे है. 
उस पर कुछ कहना नादानी ही है पर इतना जरुर कहूँगा कि इतना करने के बाद भी उसकी सर्व श्रेष्ठ कृति "इंसान" दुखी है.......वह बिचारा रास्ता भटक गया है. बिचारा इसीलिए कि भटकने के बाद तो भी बिचारा हो ही जाता है.
हम दुखी है.......क्योकि यह "दुःख" हमने बनाया...... मूल स्रोत को भूल कर नए आविष्कार शुरू कर दिए. नए आविष्कार से मेरा मतलब है मूल स्रोत से विपरीत दिशा में कदम...परमात्मा का दिया पेट तो आसानी से भर जाता है. लेकिन हमारा आविष्कृत पेट "लोभ" का पेट कभी भरता है नहीं................आदि आदि.
यहाँ मैं शिकायत नहीं कर रहा . मैं जानता हू कि आप सही कर रहे है.आपको जो चाहिए उसकी (सुख की )तलाश कर रहे है. आपको उसकी प्यास है. मुझे भी है.... लेकिन हमारी दिशा गलत है.....
हजारों हजारों वर्षों से हम बाहर सुख ढूँढ रहे है, मिला ही नहीं.... अब विनती है.(हालाँकि ये विनती ये निवेदन तो कई बार परमात्मा के बन्दों ने हमें किया है.)............ अब प्रार्थना है. कि सिर्फ एक बार दिशा बदल कर देखले तो क्या हर्ज है.......... सिर्फ निवेदन है.... जोर जबरदस्ती तो है नहीं.... मजा नहीं आये तो लौट जाइयेगा अपनी इसी दुनिया में वापस..............
आईये. उस परम सत्ता से बातें करे उसे पूछे अपने दुखो के निवारण के बारे में.....पुरे निवारण के बारे में.....
..................... मैं चाहता हू हम सिर्फ अपने आप को समझने का प्रयास करे. यही रह कर, इसी दुनिया में. कहीं नहीं जाना है. कुछ नया नहीं करना है. संन्यास नहीं लेना है...... क्योकि वहां जाकर भी हम अपना वाला पेट (परमात्मा का दिया नहीं ) भरने के तरीके ईजाद कर ही लेते है. आश्रम. चेले, चपाटे, भक्त, और मालुम नहीं और क्या क्या...... जहा है वही ठीक है. जैसे है. वैसे ही ठीक है.... अपनी खोयी वस्तु (शाश्वत सुख. पूरा सुख, समझोता नहीं.) को ढूंढना है. घर में है ठीक है, नौकरी करते है ठीक है, समय कम मिलता है. ठीक है. कॉलेज में पढते है. ठीक है. बहुत सारी बुराइय है ठीक है. नशा करते है. ठीक है. ..... सब ठीक है. सब घर की बात है. कपड़ो के अंदर बहुत सारे नंगे है..... हम सब जैसे भी है. एक समाज है एक जाती है है. जानते है कौनसी जाती- युगों युगों से सुख कि तलाश करने वाली जाती. इसीलिए हम जाती बंधू है..... आइये हम मिलकर अपनी समस्या का समाधान ढूंढते है..............................
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थोड़ी देर के लिए शांत हो जाए खाली हो जाये. कोई बोझ नहीं है, कोई जिम्मेदारी नहीं. है मैं शांत हू, शांत हू. एकदम शांत हू. मस्त हू. 
अब इन शब्दों को ध्यान से शांत होकर पढ़े.
"अपने आप में विश्वाश करो. अपने आप को पहचानो. तुम्हारे अन्दर वो ताकत है की तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम वह आग का गोला हो, जिससे यह दुनिया जगमगाती है. दूर दूर तक फैला यह समंदर बारिश के रूप में सिर्फ तुम्हारी ताकत से दुनिया की प्यास बुझाता है.
गांधी, राम, बुद्ध, महावीर, नानक, कृष्ण, अब्राहम लिंकन, सेक्सपियर, ग्राहम बेल, कोलंबस, ये लोग ऊपर(आकाश) से नहीं गिरे थे. वे भी अपनी तरह जन्मे थे. उनकी पुस्तके उठाकर पढो. हमसे कही ज्यादा संघर्ष उन्होंने किया था. उन्होंने जंगल में रास्ते बनाये. रास्ता निकलने का इंतज़ार नहीं किया.
एक बात हमेशा याद रखो.
"हम तब तक कमजोर है. जब तक हम ऐसा मानते है."
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एक बार, सिर्फ एक बार, दिल से, बिना किसी की सुने आवाज सुने, एलान करो कि तुम महान हो. तुम उदार हो, तुम्हारी आज्ञा मानने को प्रकृति हाजिर खड़ी है. तुम दुनिया को हिला सकते हो. तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है. हर कमी को पूरा करने की ताकत तुम्हारे पास पुरे रूप में है.. ..
...
अपनी ख़ुशी को फूटने दो. मन को फैलने दो. अपने विचारो से उसे रोको मत. उसे अपने वास्तविक रूप में जाने दो. खुश रहो. क्योकि प्रकृति का हर हिस्सा तुम्हे खुश देखना चाहता है.
जरा सोचो, इंसान इस धरती पर सर्व श्रेष्ठ प्राणी है. तुम इंसान हो. प्रकृति ने तुम्हे खुश देखने के लिए कितनी तैयारी की है. हजारो तरह के फूल तुम्हारी ख़ुशी के लिए ही तो खिलते है. कल कल करती नदियों की सुन्दरता तुम्हारे लिए ही तो है. .................... सोचो ................... मालूम नहीं और क्या क्या............. सिर्फ सर्व श्रेष्ट प्राणी के लिए..........सिर्फ तुम्हारे लिए ............
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जरा अब देखो .....तुम्हारा मन इसे मानने को तुरन्त तैयार हो रहा है.....
इसे संजो ..........फिर देखो...........
और तुम्हारे आस पास का वातावरण तुम्हारे अनुकूल होना शुरू हो जाएगा.
तुम्हारे दोस्त तुम्हे समझेंगे. तुम्हारे माता पिता तुम्हारी सुनेंगे. तुम्हारा व्यापार सही चलना शुरू हो जाएगा. लोग तुम्हारे पास वक्त बिताने में ख़ुशी महसूस करेंगे. .......................तुम्हारे  साथ वही होगा. जो तुम्हे ख़ुशी दे................ जय हो
अशोक सोनाना..........


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