12 जुलाई 2011

इन्हें भी देखे. शायद कुछ काम का निकल आये.

यदि आपको खुश रहने की आदत है, तो दुनिया आपके पीछे है और आपको देखती है..........
यदि आप उदास या दुखी रहते है तो आप दुनिया के पीछे है और आप दुनिया को देखते है........
याद रखे खुश रहना भी एक आदत है. तो खुश रहना सीखे.... क्योकि साजो सामान तो बहुतों के पास है, औलाद भी बहुतों के पास, और रुपया पैसा भी, फिर भी खुशियाँ कोसो दूर...............खुश रहिये आपकी खुशी ही आपकी बेशकीमती दौलत बन जायेगी और लोग आपको पूछेंगे कि..."आखीर आप इतने खुश कैसे है,"




दूसरों को वह दो. जो तुम उनसे चाहते हो..प्रेम, प्रोत्साहन, सहानुभूति,अपनत्व, मीठी बोली, समानता का भाव...क्या ये सब देने के लिए कम है.......ये लौटकर तुम्हारे पास आयेंगे...


क्या आप जानते है. हम आज तक क्या ढूंढते आ रहे है.....आनंद सिर्फ आनंद ...खाने से आनंद, पिने से आनंद, पहनने से आनंद, सोने से आनंद, पाने से आनंद, छोड़ने से आनंद, गाकर आनंद, सुनकर आनंद, देकर आनंद, लेकर आनंद, कल्पना भी वही करते है, जिससे आनंद मिलता हो,जिसे सोच कर मजा मिले..... हर वस्तु में हम आनंद की खोज करते है. हमें चाहिये आनंद. चिर आनंद, पूरा आनंद, जो खतम ना हो. यह आनंद ही हमें पूर्णता दे सकता है, यह ही हमारी खोज को खतम कर सकता है....इंसान ने आजतक जो कुछ खोजा है, जिसका अविष्कार किया है, वह सब इसी आनद की खोज में......इसके नाम अलग अलग है... संतुष्टी, शांति, अमरता, पूर्णता, मोक्ष.......




धन किसी को गिराता या उठाता नहीं है. हमारी सोच ही हमें गिरती या उठाती है.हमारी व्यापकता, उदारता,हमारा सार्वभौम प्रेम हमें महान बना देता है...




दूसरों को बदलने से कही गुना ज्यादा अच्छा है. स्वयं का सुधार.... दुनिया तो आपको देखकर ही सुधर जायेगी . क्योकि कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता.......




दुनिया का सबसे बड़ा वशीकरण है..मीठा बोलना. जबान में लोच, बोली में प्यार, वचन में सादगी...क्योकि इससे तो वे भी वश में हो जाते है, जो हमसे पहली बार मिलते है...




बुद्ध ने कहा हैः मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बँध मत जाना। तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ, तुम भी मेरे जैसे हो सकते हो, इसकी सूचना हूँ। तुम मुझे सम्मान दो, तो यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है, लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना। क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले तो बुद्ध कैसे हो पाओगे? बुद्धत्व तो खुली आँखों से उपलब्ध होता है, बंद आँखों से नहीं। और बुद्धत्व तो तभी उपलब्ध होता है, जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो।




क्या तुम अपने आप से प्रेम करते हो. क्या तुम अपने आप का आदर करते हो...... यदि नहीं तो तुम दूसरों से इसकी आशा कैसे कर सकते हो.... कि वे तुम्हे चाहे...... अपने आप को प्रेम करों (याद रहे कि प्रेम का अर्थ प्रेम होता है, गर्व या धमंद नहीं. ). .....तटस्थ हो कर, इमानदारी से, अपनी बातों का आदर करों...जैसे तुम कियो को सहजता से प्रेम करते हो, आदर करते हो,...अपने साथ भी करो....
..... देखते ही देखते तुम्हे प्रेम करने वालो कि संख्या में गजब का ईजाफा हो जाएगा...




अपने विचारो को बदले, आपकी तकदीर खुद ब खुद बदल जाएगी.




यदि आप प्यार किये बिना नहीं रह पाते है, यदि आपने ज्यादा धोखे खाए है, यदि आप को ज्यादा इकट्टा करने में रास नहीं है, यदि आप थोड़े से सुख से सुखी नहीं है, यदि आपको लुटाने में मजा आता है, यदि आप किसी का दुःख नहीं देख सकते............ तो समझो की आपने ध्यान का आधा रास्ता पार कर लिया. भले ही आपने जिंदगी में कभी ध्यान किया ही नहीं हो...
अशोक सोनाना.




दुनिया का नियम है. उगते सूरज को सभी प्रणाम (सूर्य नमस्कार ) करते है. ना कि डूबते को. उसी प्रकार लोग जीवन में खुश लोगो के साथ वक्त बिताना पसंद करते है. ना कि उदास और दुःखी के साथ. जीवन का चुनाव आपके पास है. खुशिया चुने या उदासी.




अरे एक मिनट! रुकिए! ज़रा सोचिये! और ईमानदारी से अपने आपको जवाब दीजिए. क्या आपकी सफलता के बारे में आपको लगता है. कि आप सफल हो जायेंगे. हाँ या ना............... आराम से और इमानदारी से जवाब दीजिए.जल्दबाजी न करे. अपने दिल से इमानदारी से पूछे. यदि आपको लगता है हाँ, तो आपको कोई सफल होने से नहीं रोक सकता. कोई भी नहीं......






सत्य की खोज या ईश्वर की प्राप्ति का सबसे सुन्दर माद्यम गृहस्थ रहकर खोज में लगे रहना हो सकता है.. क्योकि गृहस्थ हमारे द्वारा की गई साधना को परखने में मदद करता है.हर पल ऐसी परिस्थितिया पैदा होती है, जिससे हमारी साधना की परीक्षा होती है. .गृहस्थ जग की निरर्थकता को स्पष्टता से प्रकट करता है..यहाँ आप हर चीज को चख कर, परख कर देख सकते है, समझ कर छोड सकते है. यहाँ प्रतिबन्ध नहीं है. स्वतंत्रता है.. आपके पास विकल्प है. चाहे तो छोडे चाहे ना छोड़े..चार दिन बाद छोड़े...समझ कर विवेक पैदा होने की सम्भावना सिर्फ यही उपलब्ध है..... गृहस्थ साधना को तपाता है... इसका एक उत्कृष्ट प्रमाण यह है कि कबीर, रैदास, संत एकनाथ, संत तुकाराम,नरसिह मेहता, रामकृष्ण परमहंस,...... आदि गृहस्थ थे...और ... शुकदेव जैसे महान तपस्वी को भी गृहस्थ जनक को गुरु बनाना पड़ा...... में यह नहीं कहता कि गृहस्थ ही माध्यम है....लेकिन में यह कहता हू कि यह अपने आप में व्यवस्थित है जहां यदि आपको तड़प है तो मंजिल पाने के अवसर यहाँ ज्यादा है...................




गडबड जहाँ से होती है, सुधार भी वही से करना होता है. दुनिया में जितनी भी मुसीबतें - समस्याए है. उसकी मूल वजह उत्पति के सिद्धांत को नहीं समझ पाना है...... सृष्टि की संचालन प्रक्रिया समझ ले तो अपने कष्ट काफी कुछ कम हो सकते है. और सम्पूर्ण निवारण भी किया जा सकता है.... उतपति का सिद्धांत कोई जटिल नहीं है... नहीं सिर्फ आध्यात्मिक लोगो के लिए..... यह हम सबके लिए है... और वास्तव में बहुत ही सरल और सहज है.....इस पर जल्द ही लेख लिख रहा हू...






इस दुनिया में हो रही हर घटना,रहस्य,उलझन, विचार या चमत्कार को समझा या समझाया जा सकता है.. कुछ भी लंबे समय तक रहस्यमयी नहीं हो सकता... इसीलिए आप (इंसान) सबसे ज्यादा शक्तिवान है.. क्योकि आपका का कोई विकल्प नहीं है...
मेरी नजर में "अपने आप को कमजोर समझना ही दुनिया में सबसे बड़ा पाप है."






बच्चा जब चोकलेट के लिए हठ करता है, तो पिताजी उसे समझाने की पूरी कोशीश करते है. फिर न मानता देख दो चार चपत भी लगा देते है..... तो क्या हम मान लेते है कि उस बालक के पिता बालक से प्रेम नहीं करते... हमारे जीवन के कष्ट भी परम पिता द्वारा लगाईं गयी चपत है... संघर्ष से उदास न हो... उसे समझे और भविष्य के लिए उससे सीख ले.......


दुनिया का नियम है. उगते सूरज को सभी प्रणाम करते है. ना कि डूबते को.
लोग जीवन में खुश लोगो के साथ वक्त बिताना पसंद करते है. ना कि उदास और दुःखी के साथ.
जीवन का चुनाव आपके पास है. खुशिया चुने या उदासी.




कभी उस गरीब भिखारी की आँखों को देखो जो एक रोटी के लिए तरस रहा है... अब ज़रा उस बनिए (व्यापारी) को जो लालच से भरा हुआ है...... दोनों की सोच अलग है. लेकिन दोनों असंतुष्ट है.... भिखारी को तो शायद भूख मिटानी है. लेकिन बनिया तो लोभ में वह जोड़ने में लगा है. जिसकी उसे जरुरत ही नहीं है... जो उसका नहीं रहेगा.......... यानी. यह भिखारी से भी बड़ा भिखारी है... फिर उस भिखारी का अनादर क्यों, जो सिर्फ पेट के लिए भिखारी है.?




जिसे पाना चाहते हो उसकी कल्पना में जियो. खुश रहो. विशवास करो कि तुम उसे पा ही लोगे क्योकि तुम उसके हक़दार हो... बस! यदि यह कर सकते हो तो वह तुमसे दूर रह ही नहीं पायेगा... वास्तव में आप जिसे ढूंढ रहे हो, वह भी आपको ही ढूंढ रहा है.....

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